आलेख

स्वाभिमान और गरिमा की प्रतीक है खादी

अश्रुत पूर्वा II

खादी हाथ या हथकरघा से बना वस्त्र है। यह देश के स्वाभिमान की याद दिलाता है। 1920 में चलाए गए स्वदेशी आंदोलन के दौरान लोगों को रोजगार देने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए खादी बनाने की प्रेरणा दी थी। गांधीजी ने विदेशी कपड़ों का त्याग कर लोगों को खादी पहनने के लिए प्रेरित किया था। तब से लेकर आज तक खादी का विशेष महत्त्व रहा है।
तब से लेकर खादी के कई रूप बदले हैं। अब तो नामचीन फैशन डिजाइनर भी खादी के कपड़ों को अपने फैशन शो का हिस्सा बना रहे हैं। करीब 50 साल पहले तक खादी का बड़ा बाजार था। मगर आज खादी पहनने के लिए किसी अवसर विशेष का इंतजार करते हैं। एक समय में बेशक खादी और राजनीति का चोली दामन का साथ रहा हो मगर आज यह नेताओं की उतनी पसंदीदा नहीं रही। हालांकि बुजुर्ग नेता आज भी इसे इसे पसंद करते हैं। युवा नेताओं के लिए अब यह फैशन है।
खादी के कपड़े बनाने में मेहनत बहुत लगती है। इसलिए यह लोगों के लिए यह रोजगार का जरिया है। मगर जिस तरह से खादी पहनने वाले कम होते गए, उसी तरह इसमें रोजगार की संभावनाएं भी कम होती चली गई हैं। कुछ लोग खादी इसलिए पहनते हैं कि क्योंकि उन्हें आरामदायक लगता है। खादी बनाने के लिए नए चरखों (अंबर चरखे) का प्रयोग होने लगा तो इसका रोजगार पर भी असर पड़ा। कुछ राज्यों में बहुत से लोग इस रोजगार से दूर हो गए हैं।
कई फैशन शो में युवा खादी पहने दिखते रहे हैं। आज भी कई फैशन डिजाइनर खादी को अपने फैशन शो का हिस्सा बनाते हैं। कैम्पस का चुनाव हो या कैम्पस का फैशन, कुछ युवा खादी के कपड़ों में दिख ही जाते हैं। खादी में तरह तरह के प्रयोग के बाद लोगों का इसके प्रति रुझान बढ़ा है। खादी पहनने वाला हर युवा गरिमामय दिखाई देता है।
खादी के अलावा सूती कपड़ों और दूसरे कई कपड़ों की मांग ज्यादा रहती है। तरह-तरह के रंग और अलग-अलग डिजाइन में बनाए गए ये कपड़े लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। गर्मियों में जहां कॉटन या वाइट कॉटन की मांग ज्यादा रहती है, वहीं सर्दियों में सिल्क और वूलन कपड़ों की मांग ज्यादा होती है। कॉटन और दूसरे कपड़ों के मुकाबले खादी महंगी है। इसलिए भी लोग इसे लेने से कतराते हैं। जहां एक ओर एक ठीक ठाक टी शर्ट दो तीन सौ रुपए मिल जाती है। वहीं खादी के कपड़े उनसे कहीं महंगे पड़ जाते हैं।
फिर भी खादी के प्रति बढ़ते रुझान को देख कर इसमें नए प्रयोग किए जा रहे हैं। न सिर्फ गांधी जयंती, स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस बल्कि बाकी दिनों में भी यह फैशन का हिस्सा है। सरकार भी खादी को छूट देने के लिए साल भर छूट दे रही है। खादी का बाजार बड़ा होगा एक दिन। उम्मीद करें।    

खादी में तरह तरह के प्रयोग। लोगों का इसके प्रति रुझान बढ़ा। खादी पहनने वाले गरिमामय दिखाई देते हैं लोग।

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