अश्रुत पूर्वा II
अगर अमृता प्रीतम के बरक्स किसी कवि या कवयित्री को समानांतर रखें तो इकलौते शिव कुमार बटालवी ही याद आते हैं। यह तय है कि प्यार में नाकामी ज्यादातर कवियों को उनकी अभिव्यक्ति का नया मार्ग खोल देती है। यही हाल बटालवी का रहा। उनकी पीड़ा बहुत तीखेपन के साथ कविता में महसूस होती है। एक प्रेमी के दर्द की पीड़ा को उन्होंने गहराई से अभिव्यक्त किया। उन्होंने कविता लिखने के साथ किस्सागोई की नई शैली भी विकसित की। सचमुच बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे बटालवी।
बटालवी साहित्य अकादेमी पुरस्कार पाने वालों में सबसे कम उम्र के साहित्यकार हैं। उन्हें यह पुरस्कार 1967 में प्रदान किया गया। यह पुरस्कार उन्हें महाकाव्यात्मक नाटिका ‘लूणा’ के लिए मिला था। बता दें कि यह काव्य रचना पूरण भगत की कथा पर आधारित थी। बटालवी की कविताओं में विरह के बादल इस कदर घुमड़ते हैं कि अमृता प्रीतम ने उन्हें ‘विरह का सुल्तान’ तक कह दिया था।
समय के साथ वे पंजाबी भाषा के विख्यात कवि बन गए। उनकी कविताओं में एक ओर रुमानियत है तो दूसरी ओर हम उदासी भी पाते हैं। करुणा और पीड़ा से भीगी उनकी कविताएं पाठकों को सराबोर कर देती हैं। उनकी महाकाव्यात्मक कृति ‘लूणा’ पंजाबी साहित्य की महान कृति है। उनकी रचनाएं सरहद के पार भी उतनी ही लोकप्रिय है।
बटालवी का जन्म शंकरगढ़ के पिंड लोहटिया (अब पाकिस्तान का पंजाब प्रांत) में हुआ था। बंटवारे के बाद उनका पूरा परिवार भारत के पंजाब वाले हिस्से के बटाला में चला आया। उनके पिता यहां पटवारी थे। बटावली में 1953 में मैट्रिक परीक्षा पास की। इसके बाद उन्होंने हिमाचल जाकर सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करने के लिए दाखिला लिया, मगर यह पढ़ाई उन्होंने अधबीच में छोड़ दी। इसके बाद वे नाभा चले गए जहां उन्होंने रिपुदमन कालेज में पढ़ाई की।
बटावली की एक खास बात यह रही की वे अपनी कविताओं का खुद भी पाठ करते थे। लोग इन्हें चाव से सुनते थे। वे अपनी कविताओं में अपने स्वर से इस तरह प्राण फूंक देते थे। वह गीत में ढल जाता था। पढ़ाई के बाद और अपनी कविताओं से मशहूर होने के बाद एक समय ऐसा आया जब उनकी बैंक में नौकरी लग गई। वे स्टेट बैंक आफ इंडिया में जनसंपर्क अधिकारी नियुक्त हो गए थे। कुछ साल बाद उनकी तबीयत खराब रहने लगी। मगर उन्होंने अपना लेखन नहीं छोड़ा। आखिर वे किससे प्रेम करते थे, जिससे उन्हें प्यार अधूरा मिला। जिसकी वजह से उनकी रचनाओं में कभी विरह तो कभी घोर निराशा दिखाई देती है। इसका जिक्र अमूमन नहीं मिलता। बटालवी की प्रमुख रचनाओं में मर जाणां असां भरे भराए, मैंनू विदा करो, असां ते जोबन रुते मरना आदि प्रसिद्ध हैं।
बटावली जी रचनाओं में गेयता का अपार पुट है। यही वजह है कि उनकी कविताओं को हिंदी फिलमों में भी प्रयोग किया गया। उनकी एक कविता ‘एक कुड़ी’ को गीत की तरह पेश किया गया, जिसे युवा गायक दिलजीत दोसांझ ने गाया। इसे फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ में फिल्माया गया। इसी तरह फिल्म ‘लव आजकल’ में बटालवी एक रचना ‘आज दिन चढैÞया तेरे रंग वरगा’ को फिल्माया गया। इसी तरह नुसरत फतेह अली ने उनकी एक सुप्रसिद्ध रचना ‘माई नी माई’ को गाकर उसकी रूहानी पुकार को गुंजायमान कर दिया। वैसे बटालवी की कई रचनाओं को दीदार सिंह परदेसी के अलावा मशहूर गजल गायक जगजीत और चित्रा सिंह ने भी स्वर दिया है। ऐसा नायाब पंजाबी कवि सात मई 1973 को हम सभी को छोड़ कर हमेशा के लिए इस दुनिया से चला गया।
रूहानी पुकार का कवि:
बटालवी की रचनाओं में प्रेम में मिली नाकामी से उपजी एक ऐसी पीड़ा है जो दिल में उतर जाती है।