राजकिशोर त्रिपाठी II
नई दिल्ली। ओड़ीशा की राजधानी भुवनेश्वर से साठ किलोमीटर दूर पुरी में स्थित है भगवान जगन्नाथ का मंदिर। मन में भगवान के दर्शन का भाव लेकर हम अपने परिवार के साथ दिल्ली से चल पड़े भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए। दिल्ली हवाई अड्डे से सुबह सात बजे हमारी उड़ान भुवनेश्वर एअरपोर्ट पर सुबह नौ बजे पहुंची। भुवनेश्वर से टैक्सी लेकर हम सीधे पुरी के लिए रवाना हो गए। रास्ते में सड़क के दोनों ओर हरे-भरे पेड़ और शांत शहर भुवनेश्वर हमारी उत्सुकता को और बढ़ा रहा था। लगभग साढ़े दस बजे हम लोग पुरी पहुंच गए। होटल में फ्रेश होने के बाद हम चल पड़े भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने के लिए। लगभग एक किलोमीटर दूर से ही जगन्नाथ मंदिर की अनोखी छटा देख कर मन पुलकित हो उठा। मंदिर के बाहर आ रही समुद्र की गर्जना मंदिर में सिंह द्वार से प्रवेश करते ही एक दम शांत हो गई। मंदिर के बाहर समुद्र की लहरों का शोर मंदिर में प्रवेश करते ही सुनाई नहीं देता है। कहते हैं कि यह भगवान का ही चमत्कार है।
मंदिर में भगवान जगन्नाथ उनकी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के दर्शन कर ऐसा लगा जैसे सब कुछ पा लिया हो और मन को आत्मिक शांति का अहसास हुआ। भगवान के दर्शन के बाद मंदिर के शीर्ष पर लगी ध्वजा के दर्शन कर अद्भुत आनंद की अनुभूति हुई। भगवान की कृपा कहें या चमत्कार कि ध्वजा हमेशा हवा के विपरीत लहराती है। इस रहस्य को आज तक कोई नहीं जान सका। ओड़ीशा के इस शहर को क्या कहा जाए कि हर एक की जुबान पर एक ही शब्द रहता है-जय जगन्नाथ।
जगन्नाथ मंदिर में मिलने वाले प्रसाद को ‘महाप्रसाद’ कहते हैं। इस प्रसाद की खासियत यह है कि इसे मिट्टी के सात बर्तनों में एक के ऊपर एक रख कर पकाया जाता है और सबसे ऊपर रखे बर्तन में प्रसाद सबसे पहले पकता है। इसके अलावा यह प्रसाद लड़की के चूल्हे पर ही तैयार किया जाता है।
जगन्नाथ मंदिर के ऊपर एक आठ धातु का चक्र है, जिसे नील चक्र के रूप में जाना जाता है। इसे सुदर्शन चक्र भी कहा जाता है और इसको पूरे पुरी शहर के किसी भी स्थान से देखा जा सकता है। मान्यता है कि यह चक्र मंदिर के ऊपर से उड़ने वाले जहाजों में कई रुकावटें पैदा कर सकता है, इसलिए कोई हवाई जहाज मंदिर के ऊपर से नहीं उड़ता और इसे ‘नो फ्लाई जोन’ में रखा गया है।
जगन्नाथ मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण ही भगवान जगन्नाथ के रूप में विराजमान हैं। यहां भगवान के विग्रह की पूजा होती है। यह एक ऐसा अनोखा मंदिर है जहां भगवान का दिल धड़कता है। भगवान की मूर्तियां एक विशेष प्रकार की लकड़ी की बनी हैं। ये मूर्तियां आज भी अधूरी हैं। यह शायद अकेला ऐसा मंदिर है जहां भगवान अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ विराजमान हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार श्रीहरि ने चारधाम यात्रा की यात्रा की थी। भगवान विष्णु जब चारों धाम पर बसे, तो सबसे पहले बद्रीनाथ पहुंचे, जहां उन्होंने स्नान किया, फिर इसके बाद भगवान श्रीहरि गुजरात गए। वहां उन्होंने कपड़े बदले। इसके बाद भगवान पुरी पहुंचे, जहां उन्होंने भोजन किया और आखिर में भगवान विष्णु रामेश्वरम पहुंचे, जहां उन्होंने आराम किया। यह है चार धाम की महिमा की पूर्ण कहानी। हिंदू धर्म में ‘धरती का बैकुंठ’ कहे जाने वाले जगन्नाथ पुरी का बेहद ही खास महत्त्व समझा जाता है। यहां भगवान श्रीकृष्ण बहन सुभद्रा और भाई बलराम की रोज विधि-विधान के साथ पूजा होती है।
…अगली सुबह हम गोल्डन बीच और चंद्रभागा बीच होते हुए कोर्णाक के लिए चल पड़े। जगन्नाथ पुरी से लगभग 35 किलोमीटर दूर इस मंदिर का निर्माण 13वी शताब्दी में ओड़ीशा के राजा नरसिंह देव (एक) ने करवाया था। कोर्णाक मंदिर को देखकर हमें भारतीय शिल्प कला के समृद्ध इतिहास को करीब से जानने का मौका मिला। इस मंदिर को रथ के आकार का बनाया गया है। स्थानीय गाइड़ ने हमें बताया कि इस रथ में 12 जोड़ी पहिए और सात घोड़ों को रथ को खीचते हुए दिखाया गया है। 12 जोड़ी यानी 24 पहिए यानी 24 घंटे और सात घोड़े यानी सात दिन यह समय की गति को दिखाया गया है।
कोर्णाक मंदिर को विदेशी आक्रांताओं ने कई बार ध्वस्त किया इसलिए उस समय यहां की सूर्य देव की मूर्ति को पुरी के जगन्नाथ मंदिर में रखवा दिया गया था। इस मंदिर को साल 1984 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल घोषित किया था।
हमारा अगला पड़ाव था भुवनेश्वर स्थित भगवान शिव को समर्पित लिंगराज मंदिर। सातवीं शताब्दी में निर्मित वास्तुकला और शिल्प कला का अद्भुत नमूना है लिंगराज मंदिर। मंदिरों का शहर कहे जाने वाले उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित है लिंगराज मंदिर। विशाल प्रांगण में फैले इस मंदिर को देखकर इसकी कारीगरी आपको अचंभित कर देती है।
भुवनेश्वर स्थित उदयगिरि और खंडागिरि की गुफाएं पत्थर युग की याद दिलाती हैं। इन पहाड़ियों में कुछ प्राकृतिक और कुछ कृत्रिम गुफाएं हैं जो पुरातात्विक, ऐतिहासिक महत्त्व की हैं। गुफाओं के ऊपर से पूरे भुवनेश्वर का नजारा आप देख सकते हैं। यहां हजारों पर्यटक रोज इन गुफाओं को देखने आते हैं। यहां पर काले मुंह वाले बंदर भी देखने को मिलेंगे।
भुवनेश्वर एअरपोर्ट से लगभग पांच किलोमीटर दूर शांति स्तूप (पीस पगोड़ा) के विषय में हमें स्थानीय लोगों ने बताया कि यहीं पर सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद बौद्ध धर्म का प्रचार किया था। यहां से दया नदी का विहंगम नजारा दिखाई देता है। इसे स्थानीय लोग धौलीगिरि कहते हैं। एक नया अनुभव रहा सितंबर के महीने में मेरी जगन्नाथ पुरी यात्रा। सितंबर में गर्मी का सितम और समुद्र का किनारा। अक्तूबर से मार्च तक का मौसम यहां आने के लिए उपयुक्त है।
इसके अलावा भारत और एशिया की सबसे बड़ी खारे पानी की चिल्का झील, नंदन कानन वन्य जीव उद्यान के अलावा और भी कई दर्शनीय स्थल हैं। अगले दिन भगवान जगन्नाथ को प्रणाम कर हम सब दिल्ली को प्रस्थान कर गए।