बाल कविता बाल वाटिका

बाबू बाबू ले लो आम

सांवर अग्रवाल II

बाबू बाबू ले लो आम
देखो अब तो हो गई शाम,
टोकरी अब भी आधी है
घर पर मुझको बहुत है काम।

आम फलों का राजा है
बच्चों को बहुत भाता है,
ले लो बाबू थोड़े से बचे,
खाने में मीठे रस भरे।

थोड़ा सा गर तुम ले लोगे,
टोकरी हो जाएगी हल्की
गर्मी देखो कितनी है,
खाने को मन करता कुल्फी।

आओ आओ बाबू आओ
लगड़ा, दशहरी, चौसा ले जाओ,
मम्मी मेरी बीमार है,
दवा की दरकार है।

ले लो बाबू बच्चे होंगे खुश,
अपको दुआाएं देंगे बहुत,
मेहनत हमारा काम है
मां ने सिखाया स्वाभिमान है।

About the author

सांवर अग्रवाल

सांवर अग्रवाल कपड़े के कारोबारी हैं। असम के तिनसुकिया में वे रहते हैं। दो दिसंबर 1965 को जन्मे अग्रवाल स्वभाव से मृदुल और कर्म से रचनात्मक हैं। बातों बातों में अपनी तुकबंदियों से वे पाठकों और श्रोताओं को चकित कर देते हैं। वे लंबे समय से बाल कविताएं रच रहे हैं। सांवर अग्रवाल बाल कवि के रूप में चर्चित हैं।

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