अश्रुत पूर्वा II
बच्चों, आज हम तिरंगे की बात करेंगे। दिल्ली और देश के कई हिस्सों में और अपने विद्यालय में शान से लहराते तिरंगे को आपने कई बार देखा होगा। मगर क्या तुम जानते हो कि उसके अस्तित्व में आने की कहानी कितनी रोचक है। आज हर भारतवासी को अपने इस राष्ट्रीय ध्वज पर गर्व है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि राष्ट्रीय ध्वज को बनाने के लिए कितनी ज्यादा मेहनत करनी पड़ी।
बच्चों आप जानते हो कि हर देश का अपना एक राष्ट्रीय ध्वज होता है। भारत का भी अपना राष्ट्रीय ध्वज है जिसे आप तिरंगा भी कहते हैं। उसके बनने की कहानी बहुत दिलचस्प है। क्या तुम्हें पता है कि अपने वर्तमान रूप में आने से पहले ध्वज ने कई बार अपना रंग रूप बदला।
तिरंगे की यात्रा में अहम पड़ाव साल 1931 है। इस दौरान एक प्रस्ताव पास कर तिरंगे को आधिकारिक तौर पर भारत के ध्वज के रूप में अपनाया गया। दो पट्टी वाले ध्वज में सफेद पट्टी बीच में थी और इस पर चरखा अंकित था।
भारत के वर्तमान राष्ट्रीय ध्वज की कल्पना आंध्र प्रदेश के पिंगली वेंकैया ने की थी। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में पढ़ चुके वेंकैया की मुलाकात महात्मा गांधी से हुई। महात्मा गांधी ने उनसे भारत के लिए एक झंडा बनाने को कहा। वेंकैया ने कई देशों के झंडों पर अनुसंधान देश के लिए एक ध्वज का डिजाइन तैयार किया। पहली बार भारतीय संविधान सभा की बैठक में इसे अपनाया गया था। जिसके बाद 26 जनवरी 1950 को इसे राष्ट्रध्वज के रूप में दर्ज दिया गया।
हमारेराष्ट्रीय ध्वज में तीन रंग की क्षैतिज पट्टियों के बीच नीले रंग का एक चक्र है। ध्यान से देखना बच्चों, इसमें तीन समान चौड़ाई की क्षैतिज पट्टियां हैं, जिनमें सबसे ऊपर केसरिया रंग की पट्टी जो देश की ताकत और साहस को दर्शाती है। बीच में श्वेत पट्टी चक्र के साथ शांति और सत्य का प्रतीक है। नीचे गहरे हरे रंग की पट्टी देश के विकास और उर्वरता को दर्शाती है।
ध्वज की लंबाई एवं चौड़ाई का अनुपात 3:2 है। सफेद पट्टी के मध्य में गहरे नीले रंग का एक चक्र है जिसमें 24 (तीलियां) होती हैं। यह इस बात का प्रतीक है कि भारत निरंतर प्रगतिशील है। इस चक्र का व्यास लगभग सफेद पट्टी की चौड़ाई के बराबर होता है। इसका रूप सारनाथ स्थित अशोक स्तंभ के शेर के शीर्षफलक के चक्र में दिखने वाले की तरह है। हमारा राष्ट्रध्वज भारत की एकता, शांति, समृद्धि और विकास को अभिव्यक्त करता है।