कहानी बाल वाटिका

खुल गई पोल

बालेंदु दाधीच II

जानवर लंबे-लंबे डग भरते भागे जा रहे थे। किसी के हाथ में थाली थी, किसी के हाथ में लोटा और कोई धूप-अगरबत्ती लिए था। बीजू बंदर एक पेड़ पर बैठा नाशपाती खा रहा था। वह यह नजारा देख कर चौंक उठा।

डिंकू, डिंकू! डिंकू हांफ रहा था। उसने टीटू की बात पर ध्यान नहीं दिया और अपनी राह चलता रहा। इतने में चिम्पू खरगोश भी उधर आ निकला। उसने एक थाली में मिठाइयां और रूपए ले रखे थे। वह भागा चला जा रहा था।

चिम्पू ! क्या बात है? यह सब कहां ले जा रहे हो? टीटू ने इस बार जोर से पूछा। अपनी ऐनक चढ़ाते हुए चिम्पू ने कहा। तुम्हें नहीं मालूम, पीपल के पेड़ के रूप में भगवान का अवतार हुआ है। सारे जानवर वहीं जा रहे हैं। चलो तुम भी चलो।

दोनों पीपल के पेड़ की ओर चल दिए। टीटू ने देखा कि पीपल के पेड़ को घेरे जानवरों की भीड़ खड़ी है। सब पीपल पर कुछ न कुछ चढ़ा रहे थे। मिठाइयां और दक्षिणा का ढेर लगा था। बीजू देख कर चकित रह गया कि जब कोई पीपल के पेड़ को प्रणाम करता, तो वह बोल कर उसे आशीर्वाद देता। कोई कुछ सवाल पूछता तो पेड़ उसे कुछ बोलता। सारे जानवर जोर से पीपल देवता की जय का नारा लगाते। बीजू को इस दृश्य पर विश्वास नहीं हो रहा था।

टीटू भी पेड़ के नजदीक चला गया। वह हाथ जोड़ कर जैसे ही पेड़ के सामने खड़ा हुआ, पेड़ में से आवाज आई। तुम कुछ भेंट नहीं लाए टीटू? महाराज मुझे अभी-अभी आपका पता चला है। वरना जरूर ले आता। … उसे बोलने वाले पेड़ पर शक हो गया था।
पेड़ की परीक्षा लेने के लिए उसने पूछा. मैंने इस बार जो परीक्षा दी है, उसमें पास हो जाऊंगा कि नहीं। एक क्षण रुक कर पेड़ ने जवाब दिया, तुम जरूर पास हो जाओगे। टीटू सुन कर मुस्करा उठा।

असल में टीटू बीमारी के कारण इस बार परीक्षा में बैठा ही नहीं था। पेड़ ने जो जवाब दिया, उससे वह समझ गया कि पेड़ देवता नहीं है, वरना उसे पता होता कि उसने इस वार परीक्षा दी ही नहीं। जरूर कोई गड़बड़ है। उसने तय कर लिया कि वह इस बोलने वाले पेड़ की पोल खोल कर ही रहेगा।

शाम को टीटू फिर वहां पहुंचा। वह पास के ही एक पेड़ पर छिप कर बैठ गया। अब पीपल पेड़ के पास एक दो भक्त ही थे। रात होते-होते वे भी चले गए। टीटू दबे पांव पेड़ के नजदीक आकर बैठ गया।

कुछ समय बाद पेड़ के तने पर बने एक बड़े सुराख में से कल्लू गीदड़ को निकलते देख टीटू सारा माजरा समझ गया । कल्लू ने पहले रुपए को एक पोटली में बांध कर पेड़ के सुराख में डाल दिया और फिर दनादन मिठाइयों पर हाथ साफ करने लगा।

सुबह टीटू जंगल के राजा शेर सिंह के पास पहुंचा और उन्हें सारा किस्सा बताया। शेर सिंह गुस्से में भर उठा । कल्लू गीदड़ पहले भी जानवरों को ठगने के कारण पकड़ा गया था और शेर सिंह ने उसे देश निकाला दिया था।

शेर सिंह अपने सिपाहियों के साथ पीपल के पेड़ के पास पहुंचा और कल्लू को बाहर निकाला गया। कल्लू के होश गुम हो गए। जानवर भी बहुत गुस्से में थे कि उन्हें कल्लू ने ठग लिया था। कल्लू को जेल भेज दिया गया और जानवरों को उनके रुपए-पैसे लौटा दिए गए।

शेर सिंह ने जानवरों को अंधविश्वास करने पर लताड़ा और टीटू की प्रशंसा की। आखिर टीटू ने जंगलवासियों को लुटने से बचा लिया था।

About the author

बालेंदु दाधीच

बालेंदु दाधीच देश के जानेमाने तकनीकीविद् हैं। मगर इससे पहले वे लेखक और पत्रकार हैं। वे राजस्थान पत्रिका और जनसत्ता में महत्त्वपूर्ण पदों पर काम कर चुके हैं। इसके अलावा प्रभासाक्षी डॉट कॉम के समूह संपादक भी रह चुके हैं। बालेंदु इस समय माइक्रोसॉफ्ट के भारतीय भाषाओं के प्रभारी हैं। बालेंदु ने सूचना एवं प्रौद्योगिकी विषय पर कई किताबें लिखी हैं। वे कई पुरस्कारों से सम्मानित भी हो चुके हैं। उन्हें राष्ट्रपति भी सम्मानित कर चुके हैं।

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