अतुल मिश्र II
रेलवे प्लेटफार्म कई सारी गतिविधियों को संपन्न करने के काम आते हैं। ‘गतिविधियां’ हम उन तमाम हरकतों के गतिशील बने रहने को कहते हैं, जो किसी भी नंबर के प्लेटफार्म पर किसी भी वक़्त, किसी भी रूप में की जा सकती हैं। इसमें बिना टिकट गाड़ी में बैठने से पहले टीटी या गार्ड से सेटिंग की गुजारिश के अलावा किसी वीरान और तनहा पड़े प्लेटफार्म पर किसी से इश्क फरमाने जैसी बातें शामिल हैं। इन गतिविधियों में रेलकर्मियों के अलावा पुलिस, यात्री या कोई भी प्रति•ाागी हिस्सा ले सकता है। इधर-उधर के महंगे होटलों में जाने से क्या फायदा।
रेलवे प्लेटफार्म पर कई ऐसे भी डिब्बे खड़े दिखाई देते हैं, जो ब्रिटिश काल से वैसे ही खड़े हैं, जैसे कि अंग्रेज उन्हें छोड़ कर गए थे। भारी होने की वजह से वे इन्हें अपने साथ नहीं ले जा सके। ये डिब्बे अब लैलाओं और मजनूओं के ‘सांस्कृतिक कार्यों’ के काम आते हैं। यूं तो रेलवे स्टेशनों पर आपको विभिन्न किस्म के नजारे देखने को मिलते होंगे, मगर गौर से देखें तो भारतीय संस्कृति का अध्ययन करने के लिए देश भ्र्रमण करने कि कोई जरूरत नहीं पड़ेगी। सब कुछ यहीं मिल जाएगा।
पागल किस्म की लड़की में विभिन्न किस्म की संभावनाएं तलाशते पुलिस वाले, बिना टिकट यात्री को पकड़ कर उनसे मोल-भाव करते टीसी, बदबूदार पानी पीकर रेलवे को कोसते यात्री, किसी भी दशा में कहीं भी सो जाने वाले सिद्धांत में विश्वास करने वाले ग्रामीण या जहरखुरानी के शिकार व्यक्ति पर ज्यादा शराब पीकर जमीन पर गिरे होने के आरोप लगाते रेलवे और पुलिस के न्यायशील कर्मी जैसे सैकड़ों दृश्य हैं, जिसमें ‘इंडियन कल्चर’ तलाशी जा सकती है।
देखने के नजरिए हैं कि आप किसको किस नजरिए से देख रहे हैं। टिकट होने के बाबजूद टीसी आपको और आपकी पर्स वाली जेब को किस नजरिए से देख रहा है या बम चेकिंग अभियान पर निकले रेलवे पुलिस कर्मी आपकी अटैची को बेंत मार कर आपको किस नजरिए से देख रहे हैं या अन्य सीटें खाली होने के बाबजूद लड़कियों से सट कर बैठने वाले खूसट बूढ़े को वहां बैठे लड़के किस नजरिए से देख रहे हैं आदि ऐसी अनेक बातें हैं, जो रेलवे से जुड़ी हैं, मगर हमारा नजरिया जो है, वो वही है, जो हमेशा से रहा है। उसमें कोई बदलाव नहीं है।
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