आलेख बाल वाटिका

स्कूल जा रहे बच्चों का फिर से बढ़ाएं हौसला

फोटो- साभार गूगल

अश्रुत पूर्वा II

नई दिल्ली। महीनों बाद बच्चे स्कूल की कक्षाओं में लौट रहे हैं। उनमें फिर से वही आत्मविश्वास जगाने की जरूरत है जब वे कोरोना काल पहले स्कूल जाते थे। अभी उनकी कई आदतें बदली हुई हैं। पुराने तौर तरीकों में लौटने में कुछ हफ्ते लगेंगे। इसे लेकर छात्र ही नहीं अभिभावक भी चिंतित हो सकते हैं कि कक्षाओं में वापसी की अनिश्चितता का अकादमिक और सामाजिक रूप से उनके लिए क्या मतलब हो सकता है। कई छात्रों के घरों पर हो सकता है कि आर्थिक तनाव जैसी कोई परेशानी चल रही हो। इसका असर उनके मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ सकता है।

हम सभी जानते हैं और अध्ययन भी बताते हैं कि वैश्विक महामारी के दौरान कम उम्र के लोगों में अवसाद बढ़ा है।  सामाजिक और भावनात्मक प्रभावों पर तो अध्ययन हुए हैं लेकिन कई लोगों को यह अहसास नहीं होगा कि चिंतित रहने की इस स्थिति का बच्चे के अकादमिक कार्यों पर भी असर हो सकता है।

 उधर, आॅस्ट्रेलिया के सात लोगों में से एक को बेचैनी का अहसास हो रहा है। बच्चों में व्यग्रता और चिंता का विषय है क्योंकि 6.1 फीसदी लड़कियां और 7.6 फीसदी लड़के इससे प्रभावित हैं। अध्ययन के मुताबिक व्यग्रता की परेशानी औसतन ग्यारह साल की आयु में हो सकती है। नोट करने की बात यह है कि ये आंकड़े महामारी से पहले के हैं। एक संगठन ‘जर्नल फॉर द अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन’ ने इस साल अगस्त में एक अध्ययन छापा। इसके मुताबिक दुनियाभर में 25 प्रतिशत युवा ‘क्लिनिकल एंग्जाइटी’ से पीड़ित हैं। यह भी बताया गया कि महामारी से पहले के आंकड़ों की तुलना में कोविड-19 के दौरान अवसाद और व्यग्रता के लक्षण पाए जाने के मामले दोगुने हो गए।

ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि व्यग्रता या एंग्जाइटी में व्यक्ति घबराहट, चिंता, धड़कन तेज होने, पेट में कुछ घुमड़ने जैसा अहसास होने और बेचैनी आदि का अनुभव करता है। हमें परीक्षा देने जाने से पहले या ऐसी अन्य तनाव वाली स्थितियों में इस समस्या से दो-चार होना पड़ सकता है। और जब व्यग्रता असहनीय हो जाए और हमारे रोजमर्रा के जीवन पर असर डाले तो यह बड़ी समस्या बन जाती है।

  • ऐसे में बच्चों को भरोसा दिलाएं और गलतियों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करने के बजाए कहें कि गलतियां या छोटी मोटी विफलता तो कुछ नया सीखने के दौरान सामने आती ही हैं। और यह तो सामान्य बात हैं। बच्चों की कोशिश की प्रशंसा करें और उन्हें बताए कि उन्होंने जो काम किया, वह अच्छी तरह किया। उनकी बात सुनें, उनके प्रति लचीला रूख अपनाएं। बच्चों को शांत वातावरण दें। इस बता का ध्यान रखिए कि आपकी बैचेनी भी बच्चों तक पहुंचती हैं। उन्हें हौसला दें। उनका आत्मविश्वास जगाएं।

अब बता दें कि  बच्चों की पढ़ने-लिखनेक्षमताओं पर इसका असर कैसे होता है, ध्यान देने वाले विषयों के चयन के सिद्धांत में इस बात की साफ व्याख्या है कि कक्षाओं में व्यग्रता का कैसा असर हो सकता है। इस सिद्धांत के अनुसार व्यग्रता का उच्च स्तर मानसिक प्रक्रिया (क्रियाकलापों) की क्षमता को प्रभावित करता है लेकिन हमेशा कार्यक्षमता पर असर नहीं डालता। अनुसंधान बताते हैं कि वयस्कों में कामकाज के स्तर पर व्यग्रता का नकारात्मक असर होता है।

स्कूलों में बच्चों को आ सकने वाली दिक्कतों के बारे में अध्ययन बताता है कि अधिक व्यग्रता का सामना कर रहे बच्चों का ध्यान कक्षा में अपने काम के बजाए चिंता पैदा करने वाले विचारों की ओर जा सकता है। हो सकता है कि बच्चा अपनी भावनाओं पर काबू नहीं कर पाए। हो सकता है कि उन्हें लगे कि काम बहुत मुश्किल है या फिर वे उसमें सफल नहीं हो पाएंगे। ऐसे में उनका ध्यान अकादमिक कार्य पर लगाना मुश्किल हो सकता है और इसका असर उनके शैक्षिक प्रदर्शन पर पड़ सकता है।

तब ऐसी ऐसी स्थिति में अभिभावकों और शिक्षकों को क्या करना चाहिए? ऐसे में बच्चों को भरोसा दिलाएं और गलतियों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करने के बजाए कहें कि गलतियां या छोटी मोटी विफलता तो कुछ नया सीखने के दौरान सामने आती ही हैं। और यह तो सामान्य बात हैं। बच्चों की कोशिश की प्रशंसा करें और उन्हें बताए कि उन्होंने जो काम किया, वह अच्छी तरह किया। उनकी बात सुनें, उनके प्रति लचीला रूख अपनाएं। बच्चों को शांत वातावरण दें। ध्यान रहे कि आपकी बैचेनी भी बच्चों तक पहुंचती हैं। उन्हें हौसला दें। उनका आत्मविश्वास जगाएं। (इनपुट एजंसी)

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