लेखक परिचय/ कवि परिचय

आखिर पिता से क्यों नाराज हुए राजकमल

फोटो- साभार गूगल

सांत्वना श्रीकांत II

हिंदी और मैथिली के चर्चित लेखक राजकमल चौधरी के जीवन में ऐसा क्या हुआ था कि वे अपने पिता से बेहद नाराज हो गए। यह उस समय की बात है जब फूलबाबू यानी राजकमल की उम्र दस-बारह साल रही होगी। उनकी मां त्रिवेणी देवी का निधन हो गया तो कुछ समय बाद पिता मधुसूदन प्रसाद ने एक कमसिन लड़की जमना देवी से विवाह कर लिया। जमना राजकमल की हमउम्र थी। यह बात उन्हें कभी हजम नहीं हुई। घर में अपनी ही उम्र की लड़की को मां कहना संभवत: गवारा न हुआ। नतीजा पिता से उनके संबंध हमेशा के लिए खराब हो गए। इसके लिए कभी उन्हें माफ नहीं किया।

राजकमल अपने पिता से इस कदर खफा रहे कि उनके निधन के बाद उन्हें मुखाग्नि तक नहीं दी। और बचपन से लेकर जवानी तक एक उदासी को लंबे समय तक ओढे़ रखा। यही वजह है कि उनके साहित्य में एक अजीब किस्म की बैचैनी दिखती है। उनके लेखन में स्त्री-पुरुष संबंधों की जो जटिलता दिखती है उसके पीछे उनके अपने जीवन की पीड़ा है। एक भोगा हुआ यथार्थ है।

उनके जीवन में प्रेम धूप और छांव की तरह आया। सबसे पहले राजकमल को कॉलेज के दिनों में शोभना नाम की छात्रा से प्रेम हो गया। हालांकि वे चाह कर भी उससे विवाह नहीं कर पाए। क्या वे अपने पिता के किए का विद्रोह कर रहे थे? यह बहुत हैरत की बात है कि अपने जीवन में दूसरी शादी अपनी पहली पत्नी शशिकांता के जीवित रहते की। कहते हैं मसूरी की सावित्री शर्मा से यह शादी एक बरस भी नहीं चली। वह काफी अमीर परिवार से थीं। मसूरी में रहते हुए ही राजकमल को संतोष नाम की लड़की से प्रेम हो गया। वह सावित्री शर्मा की भतीजी थी। बता दें कि दरभंगा की शशिकांता से उनकी पहली शादी 1951 में हुई थी। तमाम प्रेम संबंधों के बावजूद राजकमल का शशि से ही स्नेह रहा। वे हमेशा उनके संपर्क में रहे।

हिंदी के पाठक उपन्यास ‘मछली मरी हुई’ और ‘देहगाथा’ के लिए राजकमल को खूब याद करते हैं। इन उपन्यासों में भारतीय स्त्री को हम एक नए फलक पर पाते हैं। राजकमल कुल जमा 38 साल तक जीवित रहे। मगर जितना जिये, उतने समय में वे देश के प्रसिद्ध कवि और कहानीकार के रूप में विख्यात हो गए। मरी हुई मछली तो उनका सर्वाधिक चर्चित और विवादास्पद उपन्यास है। इस एक उपन्यास ने उन्हें हिंदी का कालजयी उपन्यासकार बना दिया।

हम पाते हैं कि राजकमल के उपन्यासों में स्त्री-पुरुष संबंधों में कसैलापन या जरूरत से ज्यादा जटिलता उनके खुद के जीवन से निकली है। दूसरी शादी के बाद भी राजकमल एक युवती से प्रेम में क्यों उलझ गए। क्या वे प्रेम की तलाश में भटक रहे थे, या वे खुद कोई अपने ऊपर प्रयोग कर रहे थे। दुर्भाग्य ये कि इस लेखक को कभी किसी से संपूर्ण प्रेम नहीं मिला। हर बार वे अतृप्त ही रहे। यह अतृप्ति राजकमल के लेखन में कई नई संभावनाएं भरती चली गईं । उन्होंने उपन्यास तो लिखा ही, कहानियां और कविताएं भी लिखीं। यहां तक कि उन्होंने नाटक भी लिखे। राजकमल ने हिंदी में लिखा तो मैथिली के साथ अंग्रेजी में भी लिखा। यह साबित करता है कि न केवल अपने जीवन में बल्कि भाषा को लेकर भी वे काफी उदार थे। यों राजकमल ने मैथिली में अधिक लिखा है। अलबत्ता हिंदी में जितना भी उन्होंने लिखा, उससे हमारा साहित्य समृद्ध ही हुआ है।

हिंदी के पाठक उपन्यास ‘मछली मरी हुई’ और ‘देहगाथा’ के लिए राजकमल को खूब याद करते हैं। इन उपन्यासों में भारतीय स्त्री को हम एक नए फलक पर पाते हैं। राजकमल कुल जमा 38 साल तक जीवित रहे। मगर जितना जिये, उतने समय में वे देश के प्रसिद्ध कवि और कहानीकार के रूप में विख्यात हो गए। मरी हुई मछली तो उनका सर्वाधिक चर्चित और विवादास्पद उपन्यास है। इस एक उपन्यास ने उन्हें हिंदी का कालजयी उपन्यासकार बना दिया। स्त्रियों के यौनिक दमन के विरोधी राजकमल ने इस उपन्यास के माध्यम से स्त्रियों को अपनी देह को लेकर एक नई चेतना दी। मछली मरी हुई के लिए उनके कवि मन से ये पंक्तियां निकलीं-

बरसात हुई, जल भर आया…
सूखी पड़ी नदी में
नीली मछली मरी हुई
जी उठी…।

राजकमल ने मात्र 38 साल की उम्र तक इतना लिखा कि अचरज होता है। उन्होंने यथार्थ का चित्रण करते हुए स्त्री को सदैव केंद्र में रखा। उन्होंने हिंदी में कोई आठ उपन्यास लिखे। करीब ढाई सौ कविताएं और 92 कहानियां लिखीं। राजकमल ने तीन नाटक और 55 निबंध भी लिखे। उन्होंने कोई दस बरस तक एक के बाद एक शानदार कविताएं रचीं। स्त्री समलैंगिकता के कारण उनका उपन्यास मछली मरी हुई खासा मशहूर हुआ। हालांकि बीस रानियों के बाइस्कोप, ताश के पत्तों का शहर, देहगाथा-सुनो ब्रजनारी, मछली जाल, पाथर फूल, अग्निस्नान और नदी बहती थी भी काफी चर्चित रहे।

राजकमल कभी अपनी आलोचना से डरे नहीं। आलोचक मैनेजर पांडेय ने उनके बारे कहा है कि उन्होंने जो लिखा, केवल वहीं लिख सकते थे। महिला मित्रों को सहजता से आकर्षित कर लेना उनका अद्भुत गुण था। शायद इसीलिए वे महिलाओं की समस्या पर इतना कुछ लिख पाए। … हमें लगता है कि अगर राजकमल तीस साल और जीते तो अपने पीछे विराट साहित्य छोड़ जाते।

About the author

santwana

सशक्त नारी चेतना के स्वर अपनी कविताओं में मुखरित करने वाली डाॅ सांत्वना श्रीकांत का जन्म जून1990 में म.प्र. में हुआ है।सांत्वना श्रीकांत पेशे से एक दंत चिकित्सक हैं। इनका प्रथम काव्य-संग्रह 'स्त्री का पुरुषार्थ' नारी सामर्थ्य का क्रान्तिघोष है।

इनकी कविताएँ प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं- गगनांचल, दैनिक भास्कर,जनसत्ता आदि में प्रकाशित होती रहती हैं।

साथ ही वे ashrutpurva.com जो कि साहित्य एवं जीवनकौशल से जुड़े विषयों को एक रचनात्मक मंच प्रदान करता है, की संस्थापिका एवं संचालिका हैं।

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