अश्रुत पूर्वा II
जब आठ मार्च को पूरी दुनिया आधी दुनिया को सलाम करती हैं, तो ऐसे में याद आते हैं महिलाओं के प्रति प्रगतिशील विचार रखने वाले गीतकार लाहिर लुधियानवी। इसी दिन उनका जन्म हुआ। नारी के मन को समझने के पीछे कोई तो बात रही होगी। कुछ तो दिल में पीड़ा रही होगी। क्योंकि स्त्रियों के प्रति उनकी जो संवेदनशीलता है उसके पीछे उनका गहरा अतीत है। कभी-कभी मेरे दिल में खयाल आता है जैसा गीत रच कर स्त्री-पुरुष संबंधों में एक अविरल प्रेम रस भर देने वाले साहिर खुद में एक अधूरी प्रेम कहानी हैं। वे खुद में विरह का गीत हैं। फिर भी वे जिंदगी का साथ निभाते चले गए।
आठ मार्च 1921 को लुधियाना में जन्मे साहिर लुधियानवी अभी तेरह साल के ही थे कि उनके जागीरदार पिता ने दूसरी शादी कर ली। यह साहिर की मां के लिए एक सदमे की तरह था। मगर उन्होंने हौसला नहीं खोया और पति को ही छोड़ दिया। इसका असर बालक साहिर के जीवन पर पड़ा। यह दुखद ही है कि पिता के अमीर होने के बावजूद उन्हें गरीबी के दिन देखने पड़े। और यही वजह है कि इनके गीतों में, उनकी शायरी में महिलाओं के प्रति प्रगतिशील जज्बात दिखाई देते हैं।
साहिर ने कम उम्र में ही बुलंदियां छू लीं थी। दरअसल, पढ़ने लिखने की उम्र में वे गीत लिखने लगे। शायरी के प्रति उनका खासा लगाव हो गया था। युवावस्था में उनकी पहली किताब तल्खियां छप कर आ गई। इससे उन्हें खासी शोहरत मिली। यही वो वक्त था जब साहिर उर्दू अखबारों सवेरा और शाहकार के संपादक भी बने। उन्हीं दिनों एक ऐसी घटना हुई जब सवेरा में काम करने के दौरान पाकिस्तान सरकार का किसी मसले पर उन्होंने विरोध किया। इस पर उनके नाम गिरफ्तारी वारंट जारी हो गया। इस घटना के बाद साहिर भारत चले आए।
साहिर तरक्कीपसंद शायर थे। अपने प्रगतिशील विचारों से तमाम लेखकों और कवियों का उन्होंने ध्यान खींचा। वे प्रगतिशील लेखकों की जमात में शामिल हुए। साहिर के गीतों में जो प्रेम छलकता है उसके पीछे उनका अधूरा प्रेम है। बात करते हैं कालेज के दिनों की। जहां साहिर को अमृता प्रीतम से प्रेम हुआ। मगर उनकी नजदीकियों में क्यों दरार आ गई? यह कम ही लोग जानते हैं।

साहिर आजीवन अविवाहित रहे और निरंतर लिखते रहे। हिंदी सिनेमा के नायक-नायिकों के रचे गए गीतों के शब्द बन गए। साल 1957 में गुरुदत्त की फिल्म प्यासा का यह गीत कौन भूल सकता है- जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला, हमने तो जब कलियां मांगीं कांटों का हार मिला। इस गीत में हर दर्द साहिर के अपने प्रेम का दर्द है। यह कम बड़ी बात नहीं कि साहिर के लिखे गीतों को मोहम्मद रफी, लता मंगेशकर, हेमंत कुमार, किशोर कुमार, आशा भोंसले, महेंद्र कपूर और यसुदास मन्ना डे से लेकर नितिन मुकेश तक ने स्वर दिया।
फोटो- साभार गूगल
दरअसल, साहिर दूसरे समुदाय के थे और यह बात अमृता के परिवार को अच्छा नहीं लगा। बेटी का एक ऐसे युवक से प्रेम करना उन्हें नागवार गुजरा। हालत ये हुई कि अमृता के पिता की शिकायत पर साहिर को कालेज से निकाल दिया गया। नतीजा इस टूटे संबंध का गम वे सीने में आजीवन दबाए रहे। अधूरा प्रेम और इससे उपजी गहन पीड़ा दोनों ही उनके लिखें गीतों में अभिव्यक्त हुए। इसके बाद साहिर का नाम गायिका सुधा मल्होत्र से भी जुड़ा। मगर सुधा के साथ करीबियां भी एक दिन दूरियों में बदल गई।
साहिर ने फिर किसी से दिलजोई नहीं की। वे आजीवन अविवाहित रहे और निरंतर लिखते रहे। हिंदी सिनेमा के नायक-नायिकों के रचे गए गीतों के वे शब्द बन गए। साल 1957 में गुरुदत्त की फिल्म प्यासा का यह गीत कौन भूल सकता है- जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला, हमने तो जब कलियां मांगीं कांटों का हार मिला। इस गीत में हर दर्द साहिर के अपने प्रेम का दर्द है। यह कम बड़ी बात नहीं कि साहिर के लिखे गीतों को मोहम्मद रफी, लता मंगेशकर, हेमंत कुमार, किशोर कुमार, आशा भोंसले, महेंद्र कपूर और यसुदास मन्ना डे से लेकर नितिन मुकेश तक ने स्वर दिया। वहीं सचिन देव बर्मन से लेकर शंकर-जयकिशन और खय्याम तक ने धुनें बनाईं।
जीवन में निराशा भरे दौर के बावजूद साहिर ने चलते जाना सीखा। तभी वे लिख पाए-तुम भी चलो, हम भी चलें चलती रहे जिंदगी। इसी तरह फिल्म ‘हम दोनों’ का यह गीत भला कौन भूल सकता है- मैं जिंदगी का साथ मिभाता चला गया, हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया। या फि इसी तरह एक गीत- देखा है जिंदगी को कुछ इतना करीब से, चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से। या फिर मिलती है जिंदगी में मोहब्बत कभी-कभी, मिलती है दिलबरों की इनायत कभी-कभी।
… ये सभी गीत कुछ और नहीं साहिर की अधूरी मोहब्बत को अपनी रचनाओं में आवाज देने की कोशिश है। उनके गीतों में नायिका अपने नायक की हमराही है। अगर वह कमजोर पड़ता है तो उसकी आत्मीय साथी बन कर सहारा देती है। वहीं अगर नायिका कमजोर पड़ती है तो नायक उसकी ताकत बन जाता है। साहिर का लिखा यह गीत अक्सर याद आता है- पोंछ के अश्क अपनी आंखों के, मुस्कुराओ तो कोई बात बने, सर झुकाने से कुछ नहीं होगा, मुस्कराओ तो कोई बात बने। … साहिर अपने गीतों में नायिका के मखमली अंदाज को तो सहेजते हैं मगर वे कभी नहीं चाहते कि वो नाजुक बनें और टूट जाए। ऐसे दिलदार गीतकार को लोग बरसों बरस याद रखेंगे।
(साहिर की जयंती पर विशेष)

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