अश्रुतपूर्वा II
जब हम हिंदी में लिखते हैं तो कई शब्दों को लेकर असमंजस में रहते हैं। कई बार शब्दों का चयन ठीक से नहीं करते या फिर उन्हें गलत लिख देते हैं। कई बार वाक्य विन्यास में त्रुटियां रह जाती हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। मगर लोग लिखते जाते हैं। लिखने या खुद को अभिव्यक्त करने का जो संकोच पहले था, वह अब समाप्त हो गया है। इसके लिए फेसबुक, इंस्टाग्राम और ट्वीटर जैसे मंचों को धन्यवाद देना चाहिए। यहां लोग लिख रहे हैं और खूब लिख रहे हैं। हिंदी कोई एक दिन में समृद्ध नहीं हुई है। बरसों की इसकी विकास यात्रा है। सब तरह की बोलियों और भाषाओं के शब्दों को लेकर यह बड़ी भाषा बनी है। एक बड़ी बहन और मां की तरह।
हिंदी नहीं आती तो भी कोई बात नहीं। शुरुआत कीजिए। गलतियां होंगी। कोई बात नहीं। आखिर मनुष्य गलतियों से ही सीखता है। कुछ लोगों को इस बात से ऐतराज हो सकता है। भाषा में अनुशासन जरूरी है। व्याकरण की अशुद्धियों से बचना चाहिए। शब्दों के उचित चयन पर ध्यान रखना चाहिए। हम धीरे-धीरे अपनी गलतियां सुधार सकते हैं। कोई पेट से सीख कर तो आता नहीं।
हम अपने स्कूल और कालेज के दिनों में बहुत कुछ सीखते हैं। इनमें भाषा भी एक है। हिंदी के शिक्षक हमें भाषा और साहित्य के बारे में काफी कुछ पढ़ाते हैं। मगर सीखना तो हमें ही होता है। उम्र और अनुभव के साथ हमारी अपनी भाषा संवरती जाती है। भाषा संस्कार इस तरह मिलता जाता है। जीवन में भाषिक समृद्धि भी आती जाती है। बोलने में और लिखने में भी।
जैसे विचारों में, अपने व्यवहार में और जीवन में शुचिता की अपेक्षा होती है, ठीक उसी तरह भाषाई शुचिता का भी अपना महत्त्व है। भाषा में इसे लाएं कैसे? इसके लिए लेखक कमलेश कमल लगातार प्रयास कर रहे हैं। पिछले दिनों आई उनकी पुस्तक ‘भाषा संशय-शोधन’ ने हिंदी में लिखने पढ़ने वाले लोगों का ध्यान खींचा है। यह हिंदी प्रयोग करने वाले हर व्यक्ति के लिए कितना उपयोगी है, इसे पढ़ कर ही अनुभव किया जा सकता है। कमल ने वर्तनी, अर्थपरक विभेद और वाचिक अशुद्धियों के साथ व्याकरण को भी सरलता से किस तरह उन्होंने समझाया है, यह पुस्तक पढ़ कर ही जाना जा सकता है।
यह पुस्तक अपनी उपयोगिता की वजह से लगातार पाठकों तक पहुंच रही है। गैर हिंदीभाषी लोगों ने ही नहीं, अंग्रेजी में काम करने वाले पाठकों ने भी इसे सराहा है जो अब हिंदी में भी लिखना चाहते हैं। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे विद्यार्थियों, शिक्षकों और लेखकों ने भी इसमें दिलचस्पी दिखाई है। सिविल सर्विस और पीसीएस परीक्षा की तैयारी कर रहे विद्यार्थियों के लिए तो बेहद ही उपयोगी है। इसे पढ़ कर जो निबंध आप लिखेंगे उसमें अधिक नंबर मिलेंगे। यह नंबर कितना महत्त्व रखता है, इसे सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कराने वाले संस्थान जानते हैं। तो युवा इसे पढ़ कर, गुन कर अच्छी हिंदी सीखेंगे और शुद्ध हिंदी लिखेंगे। कोई दो राय नहीं।
यकीनन इसे पढ़ना खुद को समृद्ध करना है। हिंदी लिखते समय आम तौर पर ज्यादातर लोग गलतियां कर जाते हैं। हम कौन-कौन सी गलतियां करते हैं, लेखक कमल ने विस्तार से और इतनी सहजता के साथ बताया है कि सामान्य व्यक्ति भी आत्मसात कर ले।
इस पुस्तक के बारे में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलाधिपति गिरिधर मालवीय जी कहते हैं कि हिंदी भाषा और उसका साहित्य एक होते हुए भी दो पृथक-पृथक अवधारणाएं हैं। हिंदी की बात करते समय हम बहुधा यह भूल जाते हैं कि भारत में हिंदी भाषा को जानने वाले अधिक हैं और साहित्य की समझ रखने वाले अपेक्षाकृत कम। ऐसे में, भाषा जो बोलचाल और सभी प्रकार की अभिव्यक्तियों का हेतु है, उसके लिए शुद्धतावादी और मानक दृष्टिकोण तो रखना ही होगा।
हिंदी ही क्यों कोई भी भाषा लिखते समय हमें मानकता और शुद्धता का खयाल रखना ही चाहिए। मगर यह सोच कर घबराने की जरूरत नहीं। धीरे-धीरे उन शब्दों और व्याकरण का ध्यान रखते जाना है। कमलेश कमल बेहतरीन लेखक ही नहीं, भाषा वैज्ञानिक भी हैं। मगर अपनी विद्वता से डराते नहीं। वे सहजता से समझाते जाते हैं। अपनी पुस्तक ‘भाषा संशय-शोधन’ में उन्होंने ‘यह’ और ‘ये’ के बीच के अंतर को अच्छी तरह समझाया है। कोई दो राय नहीं कि इन दोनों शब्दों को लेकर कई बड़े लेखकों में भी स्पष्टता का अभाव दिखता है। जबकि इन दोनों में फर्क को आसानी से समझा जा सकता है। वे लिखते हैं-
‘यह’ एकवचन है। संस्कृत में ‘इदम’ और अंग्रेजी में ‘दिस’ के अर्थ का बोधक है। यह का बहुचन है ‘ये’। ये अंग्रेजी के ‘दीज’ का बोधक है। स्पष्टता के अभाव में लोग एक की जगह दूसरे का प्रयोग करते हैं, जैसे-‘मैं ये कहना चाहता हूं गलत है।’ सही है-‘मैं यह कहना चाहता हूं।’ इसी तरह- ‘इस उत्पाद की ये विशेषता है कि…’ गलत है। ‘इस उत्पाद की यह विशेषता है’, सही प्रयोग है।
एकवचन आदरसूचक के लिए भी ‘ये’ का प्रयोग होता है। यथा-‘ये मेरे पिताजी हैं। ये हिंदी के बड़े प्रेमी हैं।’ यहां ‘ये’ एकवचन आदरसूचक रूप में है; परंतु कोई कहे ‘उसकी ये आदत है कि वह…’ तो यह गलत प्रयोग होगा। ‘यह’ होगा ‘ये’ नहीं। तो निष्कर्ष यह कि ‘यह’ की जगह ‘ये’ और ‘ये’ की जगह ‘यह’ लिखना असाधु प्रयोग है। इस तरह लेखक कमलेश कमल ने कई शब्दों की चर्चा की है। इसके अलावा, वर्तनी, अर्थपरक विभेद, धातु व्युत्पत्ति और वाचिक अशुद्धियों से लेकर भाषा-विज्ञान पर्याय और मूलार्थ की व्याख्या की है। इस पुस्तक को प्रभात प्रकाशन ने छापा है। मूल्य चार सौ रुपए हैं।