अश्रुतपूर्वा II
बच्चो, नन्ही प्यारी सी गिलहरी के पीछे तो तुम जरूर भागे होगे। वह झटपट दौड़ कर पेड़ पर चढ़ जाती है। मगर क्या तुमने कभी उड़ने वाली गिलहरी के बारे में सुना है। ऐसी गिलहरियां जो अकसर रात में बाहर निकलती हैं। फिर घुप अंधेरे में वापस अपने अंधेरे में लौट जाती हैं। इसी कारण उड़ने वाली इन गिलहरियों को हम नहीं देख पाते। लेकिन रात में घने जंगलों की ओर जाते हुए कभी तुम को एक ऊंची और अलग तरह की आवाज सुनाई दे तो समझ जाना कि यह उड़ने वाली गिलहरी ही है।
नोवा स्कोटिया यानी उड़ने वाली गिलहरी की दो प्रजातियां हैं। दोनों ही प्रजातियां रात में ही विचरण करती हैं। मगर उनकी त्वचा, आकार और व्यवहार में फर्क होता है। ये दो प्रजातियां हैं-उत्तरी गिलहरी प्रजाति और दक्षिणी गिलहरी प्रजाति। उत्तरी गिलहरी की प्रजाति पूरे देश में पाई जाती है। वहीं दक्षिणी गिलहरी प्रजाति सिर्फ दो खास जगहों पर पाई जाती हैं, पहला केजीमकुजिक नेशनल पार्क और दूसरा गैसपिरिउ घाटी।
इन गिलहरियों का वजन आम गिलहरी से आधा होता है। इनका रंग पेड़ के तने से मेल खाता हुआ होता है। इनकी पूंछ और सिर भूरे रंग का तथा निचला हिस्सा सफेद होता है। इनकी आंखें काली और बड़ी होती हंै। इससे ये कुछ बड़ी आसानी से और साफ देख सकती हैं। यहां तक कि अंधेरे में भी। इसी वजह से यह प्राकृतिक रूप से निशाचर होती हैं। ये काफी सीधी और सरल किस्म की होती हैं। इनके शरीर की बनावट बिल्कुल चमगादड़ जैसी होती है। मगर इनकी पूंछ चौड़ी होती है। इससे इन्हें उड़ने में मदद मिलती है।
बच्चों, ये गिलहरियां लगभग सौ मीटर तक उड़ सकती हैं। बड़े आराम से एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर जा सकती हैं। इनके घोंसले पेड़ में या टूटी और मरी शाखाओं में होते हैं। इनके घोंसले शाखाओं के खोखले होने से बनते हैं। या वुडपीकर ही बना देते हैं इनके लिए। एक घोंसले में बहुत सारी गिलहरियां रहती हैं। इनको एक साथ बाहर निकलते देखना सुखद लगता है।