सांवर अग्रवाल II
गर्मी आई गर्मी आई,
पसीने अपने साथ लाई,
चिप-चिप, चिप-चिप, चिप-चिप।
मुन्नी देखो कैसे कुम्हलाई।
आमों की अब हुई बहार,
फलों का राजा सदाबहार,
रस भरे आमों से पेड़ लदे,
माली दे रहे कड़े पहरे।
मुन्नी इंतजार करती बाबा का,
आम का लाएंगे थैला,
थपकी देती नन्हे भैया को,
न करो तुम मन कसैला।
सुबह रोज काम पर जाते बाबा,
एक पल भी ना करते आराम,
मम्मी का भी रखते ख्याल,
एक दिन जाएंगे हम नैनीताल।
बाबा आए, बाबा आए,
टोकरी आम की ले आए,
मेरे बाबा कितने अच्छे हैं,
मन के कितने सच्चे हैं।
दूर खड़ी गुड्डी, आमों को निहार रही,
बाबा नहीं है उसके, मम्मी बुखार में तप रही,
बाबा ने गुड्डी को पास बुलाया,
बड़े स्नेह से गोद में बैठाया।
बोले बाबा गुड्डी से, न तुम चिंता करो,
तुम भी मेरी बेटी सजीली,
गुड्डी की आंखें भर उठीं,
वो बन गई एकदम शमीर्ली।
बाबा ने बुलाया मुन्नी को,
आज हम अमरस बनाएंगे,
पूरी और आचार के संग,
हम सब खाना खाएंंगे।
ये देख गुड्डी हुई पुलकित,
आंखो में प्यार असीमित,
भूल गई अपने बाबा को,
इस स्नेह के आगे हुई विस्मित।