संजय स्वतंत्र II
यह जो तस्वीर देख रहे हैं न, यह सुधा की नहीं है। यह प्रतीकात्मक है उन लड़कियों के लिए जिनकी आंखों में ढेर सारे सपने हैं। मगर यह ऐसी युवती की कहानी है जो तमाम संभावनाओं से भरी हुई थी। वह समाज को योगदान दे सकती थी। उसने डाक्टरी की पढ़ाई की। पिता के सपने पूरे किए। उसके खुद के भी सपने थे। सपनों में कोई राजकुमार भी था। धर्मवीर भारती के उपन्यास ‘गुनाहों के देवता’ के एक पात्र चंदर की तरह एक युवक इसके जीवन में आया भी। जिसे वह शिद्दत से चाहती थी। मगर सुधा को क्या पता था कि ये चंदर जिसे वह प्रेम का देवता समझती है, वो चंदर नहीं जो टूट कर प्रेम करता हो। उसे नहीं पता था कि यह दरअसल ‘गुनाहों का देवता’ साबित होगा। यह कोई सामान्य प्रेम नहीं था। कोई सात साल का रिश्ता था। जिसे सुधा ने पूरे मन से निभाया।
यह कैसा प्रेम था जो मन के गलियारे से होते हुए देह के भूगोल पर अटक गया और आंधी-तूफान की तरह गुजर गया। अपनी शारीरिक भूख मिटा कर। क्या एक पुरुष को ऐसा होना चाहिए जो कई बरसों तक विवाह का झांसा देकर अपनी दैहिक आग बुझाता रहे और फिर कोई दूसरी लड़की मिल जाए तो पहली मित्र को छोड़ कर आगे निकल जाए। इस परिस्थिति से निराश सुधा पर क्या गुजरी होगी। प्रेम तो कभी अकेला नहीं करता। मगर सुधा अकेली पड़ गई।
वह चली गई हमेशा के लिए। इसी के साथ उसके सपने भी गुम हो गए। पीछे रह गई उसके बूढ़े पिता की करुण गुहार जो कलेजा चाक कर देती है। वाट्स ऐप और ट्वीटर से लेकर तमाम सोशल मीडिया मंचों पर उन्हें सुनता हूं तो मन द्रवित हो जाता है।
पुरुष तो ऐसा होना चाहिए जो अपनी किस्मत में सदियों का इंतजार लिखा होने पर भी वह टिका रहे, वह अपने साथी की धड़कनों को सुनता रहे। इतना बड़ा दिल होना चाहिए उसका। इस धरती पर ऐसे पुरुषों की जरूरत है जो स्त्रियों के लिए नया संसार रच दें। उसकी आंखों में इंद्रधनुष रच दे। हो सके तो सपनोंं को भी साकार कर दे। या कम से कम साथ ही निभा दें। मगर सुधा का चंदर तो मन का संसार नहीं देह के संसार में लिप्त रहने वाला हैवान निकला। एक कमरे में, एक ही बिस्तर की अनंत सलवटों की अनंत गहराइयों में दो प्रेमी सिर्फ प्रेम नहीं करते, वे एक दूसरे की रूह में समा जाने की हद पार कर जाते हैं…।
काश कि सुधा का ऐसा नसीब होता। बस सुधा से यही गलती हुई कि वह कमजोर पड़ गई। पिछले दिनों 21 साल बाद चुनी गई मिस यूूनिवर्स हरनाज संधू ने लड़कियों को एक बड़ा संदेश दिया है-अपने जीवन की लीडर खुद बनो। दूसरे से अपनी तुलना मत करो। मेहनत करो और आगे बढ़ो। … मगर आजकल की लड़कियां क्या कर रही हैं? वह जल्दी ही प्रेम में पड़ जाती हैं। और खुद को बर्बाद कर लेती हैं।
फोटो साभार : गूगल
मगर स्वार्थ में डूबे प्रेम में ऐसा होता नहीं। जैसा कि इस सुधा को एक वक्त के बाद पता चल गया कि जो युवक उसे भोगता रहा, अब वह एक कामुक और लोलुप हैवान के सिवाय कुछ नहीं और यह तथाकथित ‘प्रेम का देवता’ दूसरी से शादी कर के भी अनंत काल तक उसे भोगते रहने की इच्छा रखता है। जाहिर है कि यह कोई भी सुधा गवारा नहीं करेगी। इस सुधा को भी यह मंजूर नहीं था। काश वह समझ पाती कि प्रेम का पाठ मन तक ही रखना चाहिए। इसे देह का पाठ नहीं बनाना चाहिए। वरना फेल होने का भी अंदेशा रहता है। यह बात सुधा ने समझने में देर कर दी।
होना तो यह चाहिए कि पुरुष अपनी सहचरी की ताकत बने। वह कभी कमजोर पड़े तो उसे संभाल ले। स्त्री-पुरुष के बीच सच्ची मित्रता यही होती है। रिश्ता चाहे कोई भी हो। भाइ-बहन का हो या पति-पत्नी का या फिर प्रेमी युगल का। हाथ थामे एक दूसरे को आगे बढ़ाने और हौसला देते रहने का नाम ही जीवन है। यही एक रिश्ता है डूब कर जीने का। इस रिश्ते को ऐसे जियें कि लम्हा थम जाएं। देह भले खत्म हो जाएं, मगर एक दूसरे की रूह में फना हो जाएं। और एक दूसरे की दुआओं में मुकम्मल हो जाएं। काश कि सुधा का ऐसा नसीब होता। बस सुधा से यही गलती हुई कि वह कमजोर पड़ गई।
पिछले दिनों 21 साल बाद चुनी गई मिस यूूनिवर्स हरनाज संधू ने लड़कियों को एक बड़ा संदेश दिया है-अपने जीवन का लीडर खुद बनो। दूसरे से अपनी तुलना मत करो। मेहनत करो और आगे बढ़ो। … मगर आजकल की लड़कियां क्या कर रही हैं? वह जल्दी ही प्रेम में पड़ जाती हैं। और खुद को बर्बाद कर लेती हैं। उसे सच्चा प्रेमी संयोग से ही मिलता है। ना भी मिले तो कम से कम एक अच्छा मित्र तो साबित हो। बेहतर हो कि अब हर सुधा मजबूत बने। वह आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने के लिए खूब पढेÞ और अपना करिअर बनाएं। अपनी पसंद का काम चुने। प्रेम में दुख-सुख तो बांटें मगर झूठे प्रेम में अपनी ‘देह का अंतिम संस्कार’ न करें। बेशक खुद जीवनसाथी चुने, मगर उसकी गहरी परख करे।
‘फर्स्ट इम्प्रेशन ही लास्ट’ इम्प्रेशन होता है, यह अंतिम सत्य नहीं है। इसमें कई दफा लड़कियां धोखा खा जाती हैं। अलबत्ता, आत्मीय संबंधों पर यह बात लागू नहीं होती है। साथी को समझने में बरसों लग जाते हैं। कई बार ऐसा होता कि हम जिसे अपना समझ रहे होते हैं वह दरअसल अपना होता ही नहीं, चुपके से एक दिन निकल जाता है, दिल से भी और जिंदगी से भी। जैसे कि सुधा के जीवन से वो कथित चंदर निकल गया। बचा क्या। एक शून्य। धर्मवीर भारती का चंदर होता तो वह शायद ही छोड़ कर जाता। और जाता भी तो दिल में रह जाता एक कसक बन कर और उसे अपनी यादों में लिए यह सुधा आगे का जीवन जीती। आज सुध जा चुकी है हमेशा के लिए। वह बस तस्वीरों में है। उसकी मुस्कान उसकी सहेलियों की आंखों में है, जिससे रह-रह कर आंसू झड़ते हैं। आपको ऐसी हर सुधा को बचाना होगा।
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