यात्रा संस्मरण

चित्रकूट का सोमनाथ मंदिर

डाॅ अतुल पांडे II

क्या आप जानते हैं सौराष्ट्र के सोमनाथ मंदिर की तरह चित्रकूट में भी एक सोमनाथ मंदिर है? यह सोमनाथ मंदिर चित्रकूट जनपद अन्तर्गत मानिकपुर मार्ग पर कर्वी से लगभग 15 किलोमीटर दूर स्थित है। यहां पहुंचने का नजदीकी रेलवे स्टेशन कर्वी और मानिकपुर है। मंदिर चर गांव की सोरठिया पहाड़ी पर स्थित है

यहां पहुंचकर मस्तिष्क में कई प्रश्न उभरते हैं जैसे कि, चारों तरफ फैली गरीबी और विकास से वंचित परिवेश के बीच इस भव्य मंदिर का निर्माण किसने किया होगा? क्यों कराया होगा? यहां यह उल्लेखनीय है कि मंदिर के आसपास वर्तमान में फैली गरीबी हमेशा से नही रही होगी अन्यथा मंदिर निर्माण संभव ही न हो पाता। साधन सम्पन्न परिवेश में ही मंदिर जैसे भव्य भवन का निर्माण सम्भव है।

सोरठिया पहाड़ी ऐतिहासिक तथ्य को समेटे हुए है। इतिहासकारों का मानना है कि मजहबी उन्माद और धर्म विस्तार से प्रेरित आक्रांताओं द्वारा सोमनाथ मंदिर का विध्वंस कर दिया जाता था जिसके परिणामस्वरूप राजवंशों का पलायन होता था।

उसी राजवंश से राजा व्याघ्र देव के वंशजों में से सुकीर्ति द्वारा सोमनाथ मंदिर का निर्माण किया गया था। इन्हीं सब कारणों से यह पहाड़ी सोरठिया पहाड़ी के नाम से जानी जाती है । चर का यह प्राचीन सोमनाथ का मंदिर वास्तु कला एवं मूर्ति कला की दृष्टि से अद्भुत है हालांकि इतिहासकारों का मानना है की 13वीं शताब्दी में तुगलकों द्वारा इस मंदिर का भी विध्वंस कर दिया गया था, खंडित अवशेषों को आज स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

स्थानीय लोगों द्वारा आज भी मंदिर में पूजा अर्चना की जाती है एवं आसपास के क्षेत्र में भगवान शिव के सोमनाथ मंदिर का विशेष महत्व है। एक पक्की सड़क आपको सोरठिया पहाड़ी तक ले जाती है, वहां से मंदिर पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनी हुई है। सोरठिया पहाड़ी एक छोटी पहाड़ी है जिस के शीर्ष पर सोमनाथ मंदिर स्थित है। मंदिर के प्रांगण में चारों तरफ टूटी हुई मूर्तियां हैं। टूटी हुई मूर्तियां और मंदिर के खंभों को इकट्ठा करके रास्ते के दोनों तरफ से रखा गया है. सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को समेटे यह एक अनमोल आर्ट गैलरी का दृश्य है।

मंदिर के अवशेषों और खंडहर को देखकर मंदिर की विशालता का अनुमान लगाया जा सकता है । चर स्थित भगवान शिव का यह सोमनाथ मंदिर कई रहस्यों को समेटे हुए हमारी विरासत की अमूल्य धरोहर है।

मन में प्रश्न उठता है की आज जबकि एडवांस टेक्नोलॉजी है क्यों ना हम मंदिर को उस पुराने वास्तविक स्वरूप में पुनर्स्थापित कर सकते हैं, और ऐसे कई उदाहरण है जिसमें खंडहर हो चुके ऐतिहासिक महत्व के स्थल को पूर्ण उद्धार करके जीवंत कर दिया है। ऐसा ही एक प्रयास किया जाना चाहिए। हालांकि सवाल यह भी है कि कौन करेगा? केंद्र सरकार के पुरातत्व विभाग? या फिर राज्य सरकार के पुरातत्व विभाग ? समय आ गया है जब हमारे सांस्कृतिक धरोहरों को संरक्षित करने के लिए जीर्णोद्धार करने के लिए एक अलग पृथक संस्था बने जो यह कार्य पूरी लगन एवं समर्पण के साथ यह कार्य कर सकें। तभी संभव है कि हम हमारे आसपास अपनी धरोहरों को आने वाली पीढ़ियों के लिए संजोकर रख सकते हैं, अपने इतिहास को किताबों से निकाल कर लोगों तक, जनमानस तक, सर्वसाधारण तक पहुंचा सकते हैं।

About the author

डॉ अतुल पांडे

Doctor turned Civil Servant. He is a certified advanced open water diver, love bike riding and exploring new places.

Leave a Comment

error: Content is protected !!