संतोषी बघेल II अकसर शब्द मायने खो देते हैं,बन जाते हैं रूढ़,जिन दिनों मैंने बस पढ़ना शुरू किया थाया...
कविता
सत्य की स्थापना फिर से करो राम
हे राम, तुम फिर सेइस धरा पर आओनवनिर्माण और नव सृजन केगीत फिर से गाओ,हे राम, तुम फिर सेइस धरा पर आओ।...
मां मुझे चरणों में ले लीजिए
अपने चरणों में मुझे जगह दीजिएनवरातन में कृपा कीजिए मैयातेरी महिमा है बड़ी, तेरी गरिमा है बड़ीदादी...
मां तुम्हारी तरह चाहिए शक्ति
डॉ. सांत्वना श्रीकांत II मैं तुम्हें अपलक देखती हूंऔर जब भी देखती हूं तुम्हेंमुझे तुममें स्त्रियों...
कामनाओं का करता हूं विसर्जन
संजय स्वतंत्र II मैं अब कर देना चाहता हूंसभी कामनाओं का विसर्जन,तट पर निस्पृह भाव में देख,नदी ने...
कोई दुख छोटा नहीं होता
सर्वेश्वरदयाल सक्सेना II निराशा की उंची काली दीवार मेंभी बहुत छोटे रोशनदान-सीजड़ी रहती है कोई न कोई...
एक खत मां के नाम
संतोषी बघेल II एक अनाम खतलिखना चाहती हूं मैंअपनी मां के नाम,ढेरों शिकायतें, ढेरों नाराजगी के...
संत नरसी मेहता का भजन ‘वैष्णव जन’
गांधी जयंती पर अश्रुतपूर्वा विशेष ।। वैष्णवजन तो तैणें कहिये जे पीर परायी जाणें रे।पर दु:खे उपकार...
प्रीति जब प्रथम-प्रथम जगती है
रामधारी सिंह दिनकर II इसमे क्या आश्चर्य? प्रीति जब प्रथम-प्रथम जगती है,दुर्लभ स्वप्न-समान रम्य नारी...
न जाने अब प्रेम था कि नहीं
अनामिका सिंह II नाद्या,यदि तुम होती सामने तोमैं टांक देती अपनेएक-एक प्रश्न कोउसी तरह तुम्हारे कानों...
क्या सोच रही है नदी
राकेश धर द्विवेदी II क्या सोच रही है नदीनदी कुछ सोच रही हैकुछ मौन की भाषा बोल रही है,देख रही है...
“शारदा वंदना”
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ II कलुष हृदय में वास बना माँ,श्वेत पद्म सा निर्मल कर दो ।शुभ्र...